कर्मचारी राज्य बिमा योजना के संबंध में अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न

  • कर्मचारी राज्य बीमा योजना क्या है?

कर्मचारी राज्य बीमा योजना के व्यापक सामाजिक सुरक्षा योजना है जिसका उद्देश्य संगठित क्षेत्र में “कर्मचारियों को बीमारी, प्रसूति, अपंगता तथा रोज़गार चोट के कारण हुई मृत्यु की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना और बीमाकृत कर्मचारियों तथा उनके परिवार के सदस्यों को चिकित्सा देखभाल की सुविधा प्रदान करना है।

  • इस योजना के अंतर्गत कर्मचारियों को किस प्रकार मद्द मिलती है ?

योजना के अंतर्गत, पंजीकृत कर्मचारी को अक्षमता की अवधि के दौरान उसके स्वास्थ्य और कार्य क्षमता के सुधार के लिए पूर्ण चिकित्सा देख-रेख प्रदान की जाती है। बीमारी, प्रसूति और रोज़गार के कारण कार्य से अनुपस्थिति की अवधि के दौरान उसकी मज़दूरी की हानि की क्षतिपूर्ति के लिए इसमें वित्तीय सहायता का प्रावधान है।

  • कर्मचारी राज्य बीमा योजना का प्रबंधन कौन करता है?

कर्मचारी राज्य बीमा योजना का प्रबंधन एक निगमित निकाय द्वारा किया जाता है जिसे कर्मचारी राज्य बीमा निगम (ई. एस. आई. सी.) कहा जाता है जिसमें नियोजकों, कर्मचारियों, केन्द्र सरकार, राज्य सरकारें, चिकित्सा व्यवसायियों तथा संसद से प्रतिनिधि सदस्य के रूप में होते हैं। महानिदेशक निगम के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और निगम के पदेन सदस्य होते हैं।

  • कर्मचारी राज्य बीमा निगम के अन्य कौन-कौन से निकाय हैं?

राष्ट्रीय स्तर पर, निगम के काम-काज के प्रबंधन के लिए स्थायी समिति (निगम का प्रतिनिधि निकाय) तथा चिकित्सा हितलाभ परिषद् जो हितलाभ अधिकारियों को चिकित्सा हितलाभ के प्रबंधन के संबंध में निगम को सलाह देने के लिए एक विशेषज्ञ निकाय के रूप में कार्य करती है।
क्षेत्रीय स्तर पर योजना के काम-काज की समीक्षा करने और इसमें सुधार के लिए सुझाव देने के लिए क्षेत्रीय बोर्ड तथा स्थानीय समितियां गठित की गई हैं।

  • योजना का वित्तीय पोषण कैसे किया जाता है?

कर्मचारी राज्य बीमा योजना एक स्वयं पोषित योजना है। कर्मचारी राज्य बीमा निधियों में प्राप्त होने वाली राशि मुख्य रूप से नियोजकों व कर्मचारियों से प्राप्त होने वाले अंशदान के रूप में आती है जो भुगतान की गई मज़दूरी की निर्धारित प्रतिशतता के रूप में मासिक आधार पर देय होती है। राज्य सरकारें भी चिकित्सा हितलाभ पर खर्च होने वाली राशि का 1/8वां भाग वहन करती हैं।

कर्मचारी राज्य बिमा योजना के संबंध में अक्सर पूछे जानेवाले प्रश्न

पंजीकरण प्रक्रिया

  • फैक्टरी / स्थापना का पंजीकरण क्या है?

पंजीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा ऐसी प्रत्येक फैक्टरी / स्थापना, जिस पर कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम लागू होता है, की, कर्मचारी राज्य बीमा योजना के
उद्देश्य से पहचान की जाती है और उनके लिए उनके पृथक अभिलेख तैयार किए जाते हैं।

  • क्या योजना के अंतर्गत नियोजकों का पंजीकरण करवाना अनिवार्य है?

जी हां, अधिनियम की धारा 2-ए के साथ पठित विनियम 10 (बी) के अन्तर्गत नियोजक की यह वैधानिक जिम्मेदारी है कि वह अपने ऊपर योजना के लागू होने के 15 दिनों के भीतर फैक्टरी / स्थापना को पंजीकृत कराए।

  • नियोजक के पंजीकरण के लिए क्या कार्यविधि है?

जिस फैक्टरी / स्थापना पर अधिनियम लागू होता है उसके संबंध में नियोजक को, पंजीकरण फार्म (01) भरकर संबंधित क्षेत्रीय कार्यालय में जमा करके एक पहचान संख्या, जिसे कूट संख्या कहा जाता है, लेनी होती है (अधिनियम की धारा 2-ए के साथ पठित विनियम 10 (बी))।

  • नियोजक के पंजीकरण फार्म के साथ कौन-कौन से दस्तावेज़ प्रस्तुत किए जाने अपेक्षित हैं?

फैक्टरी / फर्म / स्थापना के गठन से संबंधित दस्तावेज़, उत्पादन / कारोबार के आरम्भ होने की तारीख के समर्थन में साक्ष्य, भागीदारों / निदेशकों की उनके पते सहित सूची, पते का प्रमाण जैसे कि पैन कार्ड / पासपोर्ट / मतदाता पहचान-पत्र, माहवार रोज़गार स्थिति आदि आवश्यक दस्तावेज़ हैं ।

  • कूट संख्या क्या है?

यह एक 17 अंकों की पहचान संख्या है जो फार्म 01 के प्राप्त होने अथवा सामाजिक सुरक्षा अधिकारी से सर्वेक्षण रिपोर्ट प्राप्त होने पर क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा किसी फैक्टरी / स्थापना को आबंटित की जाती है।

  • उप कूट संख्या क्या है?

यह भी एक 17 अंकों की पहचान संख्या ही होती है जो क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा किसी व्याप्त फैक्टरी / स्थापना की उप – ईकाई, शाखा कार्यालय, बिक्री केन्द्र अथवा पंजीकृत कार्यालय के लिए दी जाती है जो उसी राज्य अथवा किसी अन्य राज्य में अवस्थित हो, और जिसके संबंध में नियोजक द्वारा निर्धारित प्रपत्र में विवरण दिया गया हो।

कारखाने की व्याप्ति

  • कर्मचारी राज्य बीमा योजना के अंतर्गत व्याप्ति के लिए कारखाने की परिभाषा क्या है?

धारा 2 (12) के अंतर्गत कारखाने को इस प्रकार परिभाषित किया गया है, “ऐसा परिसर जिसमें उसकी प्रसीमाएं सम्मिलित हों, जहां 10 अथवा इससे अधिक व्यक्तियों को नियोजित किया गया हो अथवा पिछले 12 माह के दौरान किसी भी दिन नियोजित किया गया हो और इस परिसर के किसी भी भाग में उत्पादन प्रक्रिया संचालित की जा रही हो या सामान्यतः की जाती हो, किंतु इसमें किसी खान को, बशर्ते कि उस पर खान अधिनियम
1952 लागू होता हो, अथवा रेलवे रनिंग शैड को सम्मिलित नहीं किया गया है।”

  • फैक्टरी / स्थापना आदि की व्याप्ति के लिए 10 / 20 व्यक्तियों की गिनती के उद्देश्य से क्या उन व्यक्तियों को भी गिना जाएगा जो अधिनिमय के अंतर्गत व्याप्त नहीं होते हैं।

हां, परिसर तथा इसकी प्रसीमाओं में नियोजित किए गए सभी व्यक्ति चाहे उनकी मज़दूरी कितनी ही क्यों न हो, अनियत कामगार, प्रशिक्षु ठेके के कर्मचारियों सहित सभी कर्मचारियों को फैक्टरी / स्थापना की व्याप्ति के उद्देश्य से गिना जाता है। यहां तक कि नियोजित किए गए निदेशकों को भी गिना जाता है।

  • फैक्टरी की व्याप्ति के लिए किन लोगों को नहीं गिना जाता?

फैक्टरी की व्याप्ति के लिए निम्नलिखित व्यक्तियों को नहीं गिना जाता ।
क) फर्म का मालिक अथवा भागीदार, भले ही वह वेतन प्राप्त करता हो अथवा नहीं।
ख) ठेकेदार जो अपने कर्मचारियों की सेवाएं दे रहा हो।
ग) प्रशिक्षु जिसे प्रशिक्षु अधिनियम, 1961 के अंतर्गत पहली बार रखा गया हो।
घ) सेवाओं के लिए ठेका आधार पर नियुक्त व्यक्ति जैसे विधि, तकनीकी, कर परामर्शी इत्यादि ।
ड) फैक्टरी परिसर से दूर शाखा / बिक्री केन्द्रों इत्यादि पर नियुक्त व्यक्तियों की अधिनियम की धारा 2 (12) के अन्तर्गत व्याप्ति के उद्देश्य से गणना नहीं की जाती। तथापि एक बार फैक्टरी के व्याप्त हो जाने पर उस फैक्टरी के शाखा कार्यालयों/ बिक्री केन्द्रों आदि पर नियुक्त सभी कामगार मजदूरी सीमा की शर्तानुसार, फैक्टरी की व्याप्ति की तारीख से अथवा शाखा कार्यालय / बिक्री केन्द्रों आदि की स्थापना के प्रथम दिन से अधिनियम की धारा 2 (9) के अंतर्गत व्याप्ति योग्य कर्मचारी होंगें।

  • परिसर’ का क्या अर्थ है?

अधिनियम के अंतर्गत “परिसर” तथा “प्रसीमाओं को परिभाषित नहीं किया गया है। कारखाना अधिनियम 1948 की धारा 2 (एम) के अंतर्गत “परिसर की दी गई परिभाषा के अनुसार यह एक सामान्य भवन अथवा शैड है। इसकी “प्रसीमाओं” शब्द के दृष्टिगत इससे कुछ दूरी पर अवस्थित, पृथक भवन, हो सकते हैं। यदि इनका प्रयोग लगातार उत्पादन प्रक्रिया के लिए किया जाता है तो इन्हें भी परिसर का भाग माना जाएगा।

  • विनिर्माण प्रक्रिया क्या है?

विनिर्माण प्रक्रिया का वही अर्थ है जो कारखाना अधिनियम की धारा 2 ( 14-ए ए) में दिया गया है। कारखाना अधिनियम की धारा 2 (के) में इसको इस प्रकार परिभाषित किया गया है:

  1. किसी भी मद व वस्तु को प्रयोग करने, बेचने, परिवहन करने पहुंचाने अथवा निपटान करने के लिए बनाना, मरम्मत करना, संवारना, अन्तिम रूप देना, पैक करना, स्नेहन, धुलाई, सफाई, तोड़ना, गिराना अथवा अन्य किसी प्रकार से व्यवहरित करना अथवा अपनाना।
  2. तेल, पानी अथवा मल जल अथवा अन्य किसी पदार्थ को पंप करना ।
  3. विद्युत का उत्पादन, परिवर्तन अथवा पारेषण।
  4. मुद्रण के लिए कम्पोजिंग, लिथोग्राफी, फोटोग्रेव्यूर अथवा इसी प्रकार के अन्य कार्य अथवा जिल्दसाजी आदि ।
  5. समुद्री जहाजों का विनिर्माण, पुनर्निर्माण, मरम्मत, दोबारा फिटिंग, अंतिम रूप देना अथवा तोड़ना ।
  6. शीत भंडारण में चीज़ों को रखना अथवा भंडारण करना ।
  7. रक्त अथवा समग्र मानव रक्त को टैप करना, एकत्र करना, मिलान करना और बोतलों में रखना ।
  • क. रा. बी. अधिनियम के अंतर्गत किस प्रकार की स्थापनाओं को व्याप्त किया जाता है?

अधिनियम की धारा 1 (5) के अंतर्गत संबंधित राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई अधिसूचना के अनुसार निम्नलिखित स्थापनाओं को जिनमें 10 / 20 जैसा लागू हो, व्यक्ति मज़दूरी पर रखे गए हों, व्याप्त किया जाता है।

  1. दुकानें
  2. होटल अथवा रैस्टोरेंट जिनमें कोई विर्निमाण प्रक्रिया नहीं होती, वे केवल बिक्री ही करते हों ।
  3. सिनेमा हाल जिनमें प्रीव्यू थियेटर शामिल हैं।
  4. रोड मोटर परिवहन स्थापनाएं।
  5. समाचार पत्र स्थापनाएं (जिन्हें धारा 2 (12) के अंतर्गत फैक्टरी के तौर पर व्याप्त नहीं किया गया हो)।
  6. प्राइवेट शिक्षा संस्थान (जिन्हें प्राईवेट व्यक्ति ट्रस्टी, सोसाइटियां अथवा अन्य संगठन चलाते हों) और चिकित्सा संस्थान (कार्पोरेट, सांझा क्षेत्र, ट्रस्ट, चैरीटेबल और प्राईवेट अस्पताल, नर्सिंग होम, निदान केन्द्र, पैथॉलोजिकल लैब सहित)
  • किसी स्थापना की व्याप्ति के लिए किस प्रकार के व्यक्तियों को गिना जाता है?

अधिनियम की धारा 1 ( 5 ) के अंतर्गत अधिनियम के प्रावधानों का स्थापनाओं पर विस्तारण करते समय राज्य सरकारों द्वारा जारी की गई अधिसूचनाओं में, फैक्टरी की परिभाषा में प्रयोग किए गए परिसर’ व “प्रसीमाओं” शब्दों का प्रयोग नहीं किया गया है। जब भी किसी स्थापना में कम से कम 10/20, जैसा लागू हो, व्यक्ति नियोजित किए गए हों, इसे अधिनियम के अंतर्गत व्याप्त किया जाएगा, भले ही ये व्यक्ति एक ही जगह पर नियोजित किए गए हों अथवा उसी स्थापना की संगठित प्रक्रिया के संबंध में अलग-अलग स्थानों पर नियोजित किए गए हों। इस प्रकार व्यक्तियों को गिना जाता है चाहे वे शाखा कार्यालयों में पंजीकृत कार्यालय में अथवा बिक्री केन्द्रों पर काम कर रहे हों और भले ही वे कार्यान्वित क्षेत्र में हों अथवा कार्यान्वित क्षेत्र से बाहर।

  • एक बार व्याप्त की गई फैक्टरी / स्थापना यदि उसमें नियोजित कर्मचारियों की संख्या निर्धारित न्यूनतम सीमा से कम रह जाती है तो क्या यह व्याप्ति से बाहर हो सकती है ?

अधिनियम के अंतर्गत एक बार व्याप्त की गई फैक्टरी / स्थापना हमेशा के लिए व्याप्त रहेगी, भले ही इसमें नियोजित किए गए कर्मचारियों की संख्या किसी भी समय अपेक्षित संख्या से कम हो जाती है।

  • क्या किसी फैक्टरी / स्थापना को ई. एस. आई. अधिनियम के अंतर्गत व्याप्ति की छूट दिए जाने का प्रावधान है?

जी हाँ यदि किसी फैक्टरी / स्थापना में कर्मचारी को कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अंतर्गत मिलने वाले हितलाभों के समान ही अथवा इससे बेहतर हितलाभ प्राप्त हो रहे हों तो उपयुक्त सरकार कर्मचारी राज्य बीमा निगम के साथ विचार-विमर्श करके उस फैक्टरी / स्थापना को भविष्यलक्षी प्रभाव से एक वर्ष के लिए छूट प्रदान कर सकती है। छूट की अवधि की समाप्ति की तारीख से तीन महीने पहले नवीकरण के लिए आवेदन देना होता है। (धारा 87 ) ।

  • प्रधान नियोजक किसे कहते हैं?

क) किसी फैक्टरी के संबंध में निम्नलिखित में से कोई भी व्यक्ति :

  1. मालिक;
  2. अधिष्ठता;
  3. मालिक अथवा अधिष्ठाता का प्रबंध एजेंट;
  4. मृत मालिक अथवा अधिष्ठाता का विधिक प्रतिनिधि;
  5. कारखाना अधिनियम, 1948 के अंतर्गत कारखाने का प्रबंधक।

ख) भारत सरकार की अथवा भारत सरकार के नियन्त्रणाधीन स्थापनाओं के मामले में

  1. विनिर्दिष्ट प्राधिकारी;
  2. विभागाध्यक्ष (विनिर्दिष्ट प्राधिकारी की अनुपस्थिती में)।

ग) अन्य स्थापनाओं के मामले में:

स्थापना के पर्यवेक्षण व नियंत्रण के लिए जिम्मेदार कोई भी व्यक्ति ।

  • आसन्न नियोजक निम्नलिखित में से कोई भी अथवा सभी हो सकते हैं?
  1. जो व्यक्ति किसी फैक्टरी / स्थापना के प्रधान नियोजक के परिसर के भीतर कोई भी कार्य करता हो ।
  2. ऐसा व्यक्ति जो किसी फैक्टरी / स्थापना का कार्य परिसर के बाहर किंतु इसके प्रधान नियोजक अथवा उसके एजेंट के पर्यवेक्षण में करता हो।
  3. ऐसा व्यक्ति जो अपने कर्मचारियों की सेवाएं किसी फैक्टरी / स्थापना के प्रधान नियोजक को भाड़े पर देता हो। तथा
  4. ठेकेदार (धारा 2 (13))।

कर्मचारियों की व्याप्ति

  • किस प्रकार के व्यक्तियों को कर्मचारी के रूप में व्याप्त किया जाता है?

व्याप्त की गई किसी फैक्टरी / स्थापना में अथवा इसके कार्य के संबंध में मजदूरी पर नियोजित किया गया कोई भी व्यक्ति तथा

  1. स्थापना के किसी भी कार्य के लिए परिसर के भीतर अथवा
    बाहर, अथवा किसी भी भाग विभाग अथवा शाखा जिसमें, प्रशासन, कच्चे माल की खरीद बिक्री अथवा फैक्टरी या स्थापना के उत्पादों के संवितरण संबंधी कार्य होता हो, में
    प्रधान नियोजक द्वारा सीधे तौर पर नियोजित किए गए कर्मचारी ।
  2. आसन्न नियोजक के कर्मचारी :-
    क)
    फैक्टरी / स्थापना के किसी भी कार्य के लिए परिसर में नियोजित कर्मचारी ।
    ) प्रधान नियोजक अथवा उसके एजेंट के पर्यवेक्षण के अधीन फैक्टरी / स्थापना के किसी काम के लिए परिसर के बाहर नियोजित कर्मचारी ।
    ) कारखाने के किसी काम के लिए प्रधान नियोजक को भाड़े पर दिए गए कर्मचारी ।
    ) कम्पनी के निदेशक जो वेतन प्राप्त करते हों।
    अपवाद :
    1. ऐसा शिक्षु जो शिक्षु अधिनियम, 1961 के अंतर्गत पहली बार नियोजित किया गया हो।
    2. ऐसा कर्मचारी जो केन्द्रीय सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी सीमा से अधिक मजदूरी ले रहा हो।
  • किसी कर्मचारी की व्याप्ति हेतु निर्धारित मजदूरी सीमा क्या है?

मजदूरी सीमा 21000 हजार रूपये प्रति माह है। दिनांकः 01.04.2008 से अशक्तता से ग्रस्त कर्मचारियों की व्याप्ति के लिए मजदूरी सीमा रूपये 25000/- है।

  • औसत दैनिक मजदूरी क्या है ?

औसत दैनिक मजदूरी
क)
किसी कर्मचारी के संबंध में “अभिदाय कालावधि के दौरान औसत दैनिक मजदूरी से अभिप्राय उस कालावधि के दौरान उसे संदेय मजदूरी की कुल राशि को दिनों की संख्या, जिसके लिए ऐसी मजदूरी संदेय थी. से विभाजित करके प्राप्त राशि से है;
ख) उजरती दर कर्मचारी के संबंध में पूर्ण मजदूरी अवधि में अर्जित की गई मजदूरी की राशि को अवधि के दौरान जितने पूर्ण अथवा आंशिक दिवसों के लिए काम किया हो उससे भाग करके निकाली गई मजदूरी ( नियम 1-बी)

  • छूट प्राप्त कर्मचारी किसे कहते हैं?

जिस कर्मचारी को कर्मचारी अंशदान का भुगतान करने से छूट प्रदान की गई हो, उसे छूट प्राप्त कर्मचारी कहते हैं। दिनांक 01.07.2011 से छूट की सीमा रु. 100/ – औसत दैनिक मजदूरी है तथापि इस मजदूरी पर नियोजक अंशदान देय है।

मजदूरी

  • अंशदान के भुगतान के लिए मजदूरी की गणना कैसे की जाती है?

अंशदान के भुगतान के लिए मजदूरी की गणना करते समय निम्नलिखित मदों को गिना जाता है:
क) मूल वेतन, मजदूरी, वेतन
ख) महंगाई भत्ता / मकान किराया भत्ता / नगर प्रतिपूर्ति भत्ता / समयोपरि / स्थानापन्न भत्ता / रातपारी भत्ता / कार्यकुशलता भत्ता / हीट, गैस, डस्ट भत्ता / शिक्षा भत्ता / भोजन एवं चाय भत्ता / वाहन भत्ता
ग) मजदूरी / वेतन / साप्ताहिक छुट्टी व सरकारी छुट्टियों के लिए वेतन
घ) बिक्री स्टाफ को भुगतान किया गया कमीशन
ड) निलम्बन की अवधि के दौरान किसी कर्मधारी को भुगतान किया गया निर्वाह भत्ता
च) उपस्थिति बोनस / उत्पादन अथवा उपस्थिति बोनस के स्थान पर प्रोत्साहन अथवा अनुग्रह राशि । छ. निदेशक को भुगतान किया गया नियमित मानदेय अथवा वेतन अथवा पारिश्रमिक
ज) स्टाफ को भुगतान किया गया उगाही बट्टा
झ) छुट्टी वेतन, कामबंदी, क्षतिपूर्ति अथवा हड़ताल की अवधि के लिए मजदूरी के रूप में भुगतान की गई वास्तविक राशि।
पण नियोजन के अनुबंध की शर्तों के अनुसार किसी कर्मचारी को नकद भुगतान किया गया अथवा भुगतान योग्य कोई भी अन्य पारिश्रमिक |
त) अन्य पारिश्रमिक, यदि कोई है, जिसका भुगतान दो माह से अधिक अंतराल पर न किया गया हो तथा अवधि 2 माह से अधिक न हो।

  • यदि किसी कर्मचारी की मजदूरी किसी माह में रुपये 15000/- से बढ़ जाती है तो क्या उसे अव्याप्त माना जा सकता है और उसकी मजदूरी में से अंशदान की कटौती बंद की जा सकती है ?

यदि किसी कर्मचारी की मजदूरी (समयोपरि कार्य के लिए मिलने वाले पारिश्रमिक को छोड़कर) अंशदान अवधि के आरम्भ हो जाने के बाद केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित मजदूरी सीमा से बढ़ जाती है तो उसे अंशदान अवधि की समाप्ति तक कर्मचारी माना जाएगा और उसके द्वारा अर्जित की गई कुल मजदूरी पर अंशदान काटा जाएगा व इसका भुगतान किया जाएगा।

  • किसी पिछली तिथि से प्रभावी मजदूरी में वृद्धि का क्या प्रभाव होता है ?

यदि किसी कर्मचारी की मजदूरी किसी पिछली तिथि से बढ़ जाती है वे इसके परिणामस्वरूप वह निर्धारित मजदूरी सीमा पार कर जाता है तो कर्मचारी की व्याप्ति पर इसका प्रभाव उस अंशदान अवधि की समाप्ति के बाद ही होगा जिसके दौरान इस प्रकार की वृद्धि की घोषणा की गई हो। जिस माह में मजदूरी वृद्धि की घोषणा की गई हो उससे पहले की अवधि की बकाया राशि पर अंशदान का भुगतान करने की कोई आवश्यकता नहीं है ।

  • यदि कोई कर्मचारी केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित मज़दूरी सीमा को पार कर जाता है तो मजदूरी सीमा से अधिक कुल मजदूरी पर अंशदान का भुगतान क्यों किया जाए ?

जो कर्मचारी अंशदान अवधि के आरम्भ हो जाने के बाद किसी भी समय निर्धारित मज़दूरी सीमा पार कर जाता है, वह अंशदान अवधि के अंत तक कर्मचारी ही रहता है।
यद्यपि किसी कर्मचारी की व्याप्ति के लिए मजदूरी सीमा निर्धारित है, तथापि, अंशदान के भुगतान के लिए मजदूरी की परिभाषा में कोई सीमा नहीं है। इसलिए बिना किसी सीमा के पूर्ण मजदूरी पर अंशदान देय है।

  • किसी कर्मचारी की व्याप्ति के लिए मजदूरी सीमा के लिए समयोपरि भत्ते को शामिल क्यों नहीं किया जाता ?

समयोपरि भत्ता नियमित और निरंतर किया जाने वाला भुगतान नहीं है बल्कि यह कभी-कभार मिलने वाली राशि होती है। यदि किसी कर्मचारी की व्याप्ति के लिए मजदूरी सीमा के लिए समयोपरि भत्ते को भी गिन लिया जाए तो वह कुछ समय के लिए व्याप्ति से बाहर हो जाएगा व जब समयोपरि भत्ता नहीं मिलेगा तो फिर योजना के अंतर्गत व्याप्ति योग्य हो जाएगा। इस प्रकार योजना से बार-बार निकल जाने के कारण उसे अंशदान अवधि के कुछ भाग के लिए अंशदान का भुगतान करने पर भी योजना के अंतर्गत हितलाभ देय नहीं

होंगे। निरंतर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कर्मचारी की व्याप्ति के लिए मजदूरी सीमा निर्धारित करने के लिए समयोपरि भत्ते को सम्मिलित नहीं किया जता । तथापि, उसे अंशदान के भुगतान के लिए सम्मिलित किया जाता है ताकि समयोपरि कार्य की अवधि के दौरान के जोखिम को व्याप्त किया जा सके और उसे बढ़ी हुई दर पर नकद भुगतान प्राप्त हो सके क्योंकि उसकी औसत दैनिक मजदूरी में समयोपरि भत्ता जोड़ देने से वह नकद हितलाभ का दावा करते समय क.रा.बी. (केन्द्रीय) नियम-1950 (संशोधित) 55, 56, 57 तथा 58 में दी गई हितलाभ उच्चतर दर के लिए पात्र हो जाता है।

अंशदान

  • अंशदान क्या है?

अधिनियम की धारा 2 (4) के प्रावधानों के अनुसार अंशदान वह राशि है जो प्रधान नियोजक अथवा उसकी ओर से किसी कर्मचारी के संबंध में निगम को देय होती है।

  • अंशदान की वर्तमान दर क्या है?

(क) नियोजक अंशदान किसी कर्मचारी को भुगतान की जाने वाली मजदूरी का 4.75 प्रतिशत के बराबर राशि जो अगले उच्चतर रुपये तक पूर्णांकित की गई हो।
(ख) कर्मचारी अंशदान किसी कर्मचारी को भुगतान की जाने वाली मजदूरी का 1.75 प्रतिशत के बराबर राशि जो अगले उच्चतर रुपये तक पूर्णांकित की गई हो।

  • क्या नियोजक अंशदान के भुगतान से छूट का कोई प्रावधान है?

दिनांक 01.04.2010 से अशक्तता से ग्रसित कर्मचारियों की व्याप्ति के लिए मजदूरी सीमा पच्चीस हजार रुपये प्रतिमाह तक बढ़ाई जा चुकी है। नियोजकों को अशक्तता से ग्रसित अधिक से अधिक कर्मचारियों को नियुक्त करने हेतु प्रोत्साहित करने के लिए जिस अंशदान अवधि में इस प्रकार के कर्मचारी को नियोजित किया गया हो उससे अधिकतम तीन वर्ष की अवधि तक नियोजक अंशदान की छूट प्रदान की गई है। इस प्रकार के मामलों में केन्द्रीय सरकार नियोजक अंशदान की प्रतिपूर्ति कर्मचारी राज्य बीमा निगम को करेगी।

  • अंशदान भुगतान की समय सीमा क्या है?

अंशदान का भुगतान, निगम द्वारा प्राधिकृत बैंक में उस कैलेण्डर माह के अंतिम दिन से 21 दिन के भीतर जमा किया जाएगा जिसमें कि मजदूरी का भुगतान किया गया हो (विनिमय 29 व 31 ) ।

  • भुगतान करने की रीति क्या है?

सभी कर्मचारियों के संबंध में अंशदान की पूरी राशि (दोनों भाग ) प्रत्येक माह में प्राधिकृत बैंक की शाखाओं में नकद या चैक द्वारा चालान के माध्यम से या मांग पत्र द्वारा निर्धारित प्रपत्र में चार प्रतियों में जमा करनी होती है। मांग किए जाने पर निर्धारित चालान फार्म संबंधित शाखा कार्यालय द्वारा निःशुल्क प्रदान किए जाएंगे। फार्म-5 में कर्मचारियों के ऑन-लाइन रजिस्टर में सभी आवश्यक ब्यौरे देते हुए ऑन-लाइन चालान सृजन करने के बाद ऑन-लाइन भुगतान किया जा सकता है।

  • यदि कर्मचारियों का अंशदान काट तो लिया जाए किंतु इसे जमा न किया जाए अथवा विलम्ब से जमा किया जाए तो इसके क्या परिणाम हैं?

कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम के अंतर्गत प्रधान नियोजक द्वारा मज़दूरी में से काटी गई कोई भी राशि कर्मचारी द्वारा उसे अंशदान का भुगतान करने के लिए सौंपी हुई समझी जाएगी (धारा 40 (4) ) कर्मचारी की मज़दूरी में से काटे गए कर्मचारी अंशदान का भुगतान न करने अथवा भुगतान विलंब से करने को ‘न्यास भंग’ ( विश्वासघात) माना जाएगा जो भारतीय दण्ड संहिता की धारा 406 के अंतर्गत दण्डनीय है।

  • क्या देर से भुगतान की गई राशि पर कोई ब्याज लगेगा?

यदि कोई नियोजक विनियम 31 के अंतर्गत निर्धारित समय-सीमा में अंशदान का भुगतान करने में असफल रहता है तो उसे चूक के, अथवा भुगतान में विलंब के प्रत्येक दिन के लिए 12 प्रतिशत वार्षिक की दर से साधारण ब्याज का भुगतान करना होगा (विनियम – 31 – क ) |

  • अंशदान का भुगतान न करने या देर से भुगतान करने के संबंध में दण्ड का क्या प्रावधान है?
  • अधिनियम की धारा- (क) के अंतर्गत नियोजक अभियोजन का भागी है।
  • निगम निम्नलिखित दरों से हर्जानों की उगाही और वसूली कर सकता है, जोकि चूक के लिए देय अंशदान की राशि या अंशदान के भुगतान में देरी के लिए निर्धारित राशि से अधिक नहीं होंगी:
देरी की अवधिहर्जानों की दर प्रतिशत प्रति वर्ष
02 माह से कम05 प्रतिशत
2 माह से अधिक परंतु 4 माह से कम10 प्रतिशत
4 माह से अधिक परंतु 6 माह से कम15 प्रतिशत
6 माह या उससे अधिक25 प्रतिशत
  • अंशदान अवधियां और हितलाभ अवधियां क्या है?

वित्तीय वर्ष अप्रैल से मार्च को दो छमाही अंशदान अवधियों में विभाजित किया गया है जो 1 अप्रैल से 30 सितम्बर तथा 1 अक्तूबर से अगले वर्ष 31 मार्च तक हैं। प्रत्येक अंशदान अवधि के लिए हितलाभ अवधि संबंधित अंशदान अवधि की समाप्ति के तीन महीने बाद से आरम्भ होती है जो कि जनवरी से जून तथा जुलाई से दिसम्बर है (जनवरी से दिसम्बर तक के कैलेण्डर वर्ष को दो छमाही हितलाभ अवधियों में विभाजित किया गया है)।

अभिलेखों का रखरखाव

  • कर्मचारी राज्य बीमा के लिए कौन-कौन से रिकार्ड रखे जाने अपेक्षित हैं?

कर्मचारी राज्य बीमा के लिए विभिन्न कानूनों के अंतर्गत रखे जाने वाले उपस्थिति नामावली, मजदूरी अभिलेख और लेखा पुस्तिकाओं के अतिरिक्त निम्नलिखित रजिस्टरों को अनुरक्षित करना अपेक्षित है:

  1. नए फार्म-6 में कर्मचारी रजिस्टर ।
  2. नए फार्म-11 में दुर्घटना रजिस्टर और
  3. निरीक्षण पुस्तक ।
    आसन्न नियोजक के लिए भी प्रधान नियोजक के लिए तैनात किए गए कर्मचारियों हेतु कर्मचारी रजिस्टर अनुरक्षित करना अपेक्षित है।
  • नियोजक द्वारा कौन-कौन सी विवरणियां / रिपोर्ट प्रस्तुत की जानी अपेक्षित हैं?
  1. पूर्ववर्ती वर्ष के दौरान यदि कोई बदलाव हो तो इसे दर्शाते हुए फार्म- 01 ए में वार्षिक विवरणी क्षेत्रीय कार्यालय को प्रत्येक वर्ष की 31 जनवरी तक।
  2. प्रत्येक अंशदान अवधि की समाप्ति के 42 दिन के भीतर, अंशदान विवरणी चार प्रतियों में शाखा कार्यालय को छः माही के दौरान भुगतान किए गए चालानों के साथ प्रस्तुत की जानी अपेक्षित है, अर्थात 30 सितम्बर को समाप्त अंशदान अवधि की विवरणी 11 नवम्बर तक तथा 31 मार्च को समाप्त अंशदान अवधि की विवरणी 12 मई तक प्रस्तुत की जानी अपेक्षित है।
  3. रिपोर्ट: यदि कोई दुर्घटना होती है तो दुर्घटना रिपोर्ट फार्म-12 में ।
  4. घोषणा पत्र: फार्म-1 में इकाई की व्याप्ति के समय सभी कर्मचारियों के संबंध में और इस के बाद जब कभी
    कोई नया कर्मचारी बीमा योग्य रोजगार में नियोजित किया जाता है तो 10 दिन के भीतर फार्म-3 में दो प्रतियों में विवरणी के साथ।

कर्मचारियों का पंजीकरण

  • बीमाकृत व्यक्ति का पंजीकरण क्या है?

पंजीकरण, अधिनियम के अंतर्गत किसी कर्मचारी की पहचान के उद्देश्य से, उसके “बीमा योग्य रोजगार में प्रवेश के संबंध में सूचना प्राप्त करने और उसे अभिलेखबद्ध करने की प्रक्रिया है।

  • बीमाकृत व्यक्ति का पंजीकरण क्यों किया जाता है?

अधिनियम के अंतर्गत प्रदान किए जाने वाले हितलाभ बीमाकृत व्यक्ति की ओर से नियोजक द्वारा भुगतान किए गए अंशदान से संबंधित होते हैं। इसलिए प्राप्त अंशदानों को उचित ढंग से अभिलेखबद्ध करने के लिए तथा हितलाभों के लिए उसके दावों का भुगतान करने के लिए बीमाकृत व्यक्ति का पंजीकरण आवश्यक है।

  • योजना के अंतर्गत कर्मचारियों को कैसे पंजीकृत किया जाता है ?

बीमा योग्य रोजगार में प्रवेश करते समय, कर्मचारी को घोषणा पत्र ( फार्म – 1 ) भर कर अपने परिवार की फोटो की दो प्रतियों के साथ नियोजक को प्रस्तुत करना होता है, जिसे उसके नियोजक द्वारा कर्मचारी राज्य बीमा शाखा कार्यालय में प्रस्तुत किया जाता है। इसके पश्चात कर्मचारी को योजना के अंतर्गत उसकी पहचान हेतु एक बीमा संख्या आबंटित की जाती है और तीन माह की अवधि के लिए उसे तथा उसके परिवार के सदस्यों को चिकित्सा हितलाभ प्राप्त करने हेतु अस्थाई पहचान पत्र जारी किया जाता है। उसके बाद उसे स्थाई फोटो पहचान पत्र जारी किया जाता है। जिस व्यक्ति का एक बार पंजीकरण हो जाता है उसे रोजगार बदलने पर पुनः पंजीकरण करवाने की आवश्यकता नहीं होती है। उसी पंजीकरण को एक स्थान से दूसरे स्थान पर बदला जा सकता है। अब कर्मचारी राज्य बीमा निगम ऑन लाइन होने जा रहा है। स्मार्ट कार्ड जिसे पहचान पत्र कहा जाता है, कर्मचारी तथा उसके परिवार के सदस्यों को बायोमैट्रिक ब्यौरों सहित अलग-अलग जारी किए जा रहे हैं, जिससे वे पूरे देश में कर्मचारी अपना नकद हितलाभ भी देश भर में किसी भी कर्मचारी राज्य बीमा शाखा कार्यालय से ले सकता है।

  • पहचान पत्र क्या है?

योजना के अंतर्गत पंजीकृत हो जाने पर कर्मचारी को बीमाकृत व्यक्ति परिभाषित कहा जाता है। उसे “अस्थाई पहचान-पत्र दिया जाता है जोकि तीन माह की अवधि तक मान्य होता है। परंतु यदि आवश्यक हो तो इसे तब तक के लिए बढ़ाया जा सकता है, जब तक पारिवारिक ब्यौरों सहित स्थाई परिवार फोटो पहचान पत्र जारी नहीं हो जाता। पहचान पत्र अस्पताल / औषधालय से चिकित्सा हितलाभ लेने तथा कर्मचारी राज्य बीमा शाखा कार्यालय से नकद हितलाभ लेने दोनों के लिए पहचान का साधन है। पहचान पत्र पर बीमाकृत व्यक्ति के हस्ताक्षर या अंगूठा का निशान होना चाहिए। आवास / औषधालय / रोज़गार में किसी प्रकार के बदलाव को शाखा कार्यालय प्रबन्धक द्वारा पहचान पत्र में दर्ज किया जाता है। अब बीमाकृत व्यक्ति को अपनी सुविधानुसार किसी भी कर्मचारी राज्य बीमा शाखा कार्यालय से नकद हितलाभ प्राप्त करने के लिए स्मार्ट कार्ड (पहचान जारी किए जा रहे हैं।

चिकित्सा हितलाभ

  • चिकित्सा हितलाभ क्या है?

चिकित्सा हितलाभ का अर्थ है अधिनियम के अंतर्गत व्याप्त बीमाकृत व्यक्तियों तथा उनके परिवारों को, जब कभी आवश्यकता हो, चिकित्सा सहायता व उपचार उपलब्ध कराना केवल यही एक ऐसा हितलाभ है जो राज्य सरकारों के माध्यम से (दिल्ली को छोड़कर) तथा एकरूपता से सभी को उनकी आवश्यकता के अनुसार, उनकी मजदूरी व अंशदान पर ध्यान दिए बिना, दिया जाता है।

  • चिकित्सा हितलाभ का क्या पैमाना है?

चिकित्सा, सर्जीकल व प्रसव संबंधी उपचार जिसमें अंतरंग उपचार, बाह्य उपचार, सभी दवाइयों की आपूर्ति, मरहम पट्टियां, पैथॉलोजिकल और रेडियोलोजिकल जांच-पड़ताल, प्रसव के पूर्व व प्रसव के बाद की देखभाल, अति विशिष्ट परामर्श एवं उपचार, रोगी वाहन सेवाएं, कृत्रिम अंगो आदि के प्रावधानों सहित पूर्ण चिकित्सा हितलाभ |

  • चिकित्सिा हितलाभ कब से कब तक मिलता है?

बीमा योग्य रोज़गार में आने की तारीख से ही बीमाकृत व्यक्ति और उसका परिवार चिकित्सा हितलाभ के लिए पात्र है। कोई भी व्यक्ति जो योजना के अंतर्गत पहली बार व्याप्त होता है वह स्वयं तथा उसके परिवार के सदस्य तीन माह के लिए चिकित्सा हितलाभ के पात्र होते हैं। यदि वह तीन महीने या इससे अधिक समय तक बीमा योग्य रोज़गार में बना रहता है तो उसे तदनुरूपी हितलाभ अवधि के आरंभ होने तक हितलाभ स्वीकार्य है। यदि अंशदान अवधि में अंशदान का भुगतान / देय भुगतान 78 दिनों से कम नहीं है तो, चिकित्सा हितलाभ तदनुरूपी हितलाभ अवधि की समाप्ति तक स्वीकार्य है। यदि बीमाकृत व्यक्ति क.रा.बी. योजना में कम से कम दो वर्ष तक व्याप्त रहता है और उसने 156 दिनों से कम अंशदान का भुगतान नहीं किया है तो, यदि वह 34 विनिर्दिष्ट दीर्घकालीन बीमारियों में से किसी एक से ग्रस्त है, तो उसे तथा उसके परिवार के सदस्यों को पूर्णतया स्वस्थ होने तक अथवा तीन वर्ष की अवधि तक चिकित्सा हितलाभ स्वीकार्य है।

  • अस्थाई या दैनिक कर्मचारी जिसने तीन या चार दिन कार्य किया और रोजगार छोड़ दिया वह कैसे चिकित्सा देखभाल का पात्र है?

यदि वह पंजीकरण प्रक्रिया पूरी होने से पहले ही रोजगार छोड़ देता है, तो नियोजक उसे फार्म एसिक-86 में ‘रोजगार प्रमाण-पत्र देता है जिसमें उसके रोजगार में आने की तारीख, छोड़ने की तारीख, परिवार के ब्यौरे आदि का उल्लेख होता है। इस प्रमाण-पत्र के आधार पर वह व्यक्ति और उसके परिवार के सदस्य तीन महीने की अवधि के लिए चिकित्सा हितलाभ ले सकते हैं।

  • यदि बीमाकृत व्यक्ति के परिवार के सदस्य राज्य में अन्य स्थान पर या अन्य राज्य में रहते हों तो परिवार के सदस्य कैसे चिकित्सा हितलाभ प्राप्त कर सकते हैं?

यदि बीमाकृत व्यक्ति का परिवार कहीं अन्य स्थान पर, चाहे उसी राज्य में या किसी अन्य राज्य में रहता है तो बीमाकृत व्यक्ति द्वारा दी गई घोषणा के आधार पर और नियोजक द्वारा प्रमाणित किए जाने पर परिवार को “परिवार पहचान पत्र जारी किया जाता है जिसके द्वारा वे जिस क्षेत्र में निवास करते हों, वहां कर्मचारी राज्य बीमा औषधालय से चिकित्सा हितलाभ लेने के लिए पात्र हैं। आई. टी. रोल आउट
बाद, ‘परिवार’ को
अलग से “स्मार्ट कार्ड जारी किया जा रहा है। इस स्मार्ट कार्ड को दिखाने पर बीमाकृत व्यक्ति के परिवार के सदस्य, जहां वे रहते हैं या देश के किसी भी स्थान पर कर्मचारी राज्य बीमा अस्पताल / औषधालय में चिकित्सा हितलाभ ले सकते हैं ।

  • बीमाकृत व्यक्ति जब अस्थाई अवधि के लिए किसी दूसरे स्थान पर चला जाता है तो वह चिकित्सा प्रसुविधा कैसे प्राप्त करे?

बीमाकृत व्यक्ति को चाहिए कि वह प्रवास से पहले, अपने नियोजक से प्रपत्र एसिक – 105 में नियोजन प्रमाण-पत्र प्राप्त कर ले तथा इस प्रमाण-पत्र को अपने पहचान पत्र के साथ रखे। इसके आधार पर बीमाकृत व्यक्ति देश भर में किसी भी कर्मचारी राज्य बीमा औषधालय / अस्पताल में चिकित्सा प्रसुविधा का लाभ प्राप्त कर सकता है। आई.टी. रोल आउट के अस्तित्व में आने के बाद स्वयं एवं उसके परिवार के लिए “पहचान पत्र जारी किए जा रहे हैं। इससे बीमाकृत व्यक्ति या उसका परिवार देश भर में किसी भी कर्मचारी राज्य बीमा औषधालय / अस्पताल से चिकित्सा सुविधा का लाभ प्राप्त कर सकता है।

कामगारों को लाभ

  • बीमारी हितलाभ क्या है?

यदि किसी बीमाकृत व्यक्ति को चिकित्सा उपचार व परिचर्या तथा चिकित्सा आधार पर कार्य से अनुपस्थिति की आवश्यकता हो, तो उसे प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा अभिप्रमाणित अनुपस्थिति अवधि के लिए बीमारी हितलाभ देय होगा। बीमारी हितलाभ उसे उसकी मज़दूरी के 60 प्रतिशत की दर से क्रमिक दो हितलाभ अवधियों (अर्थात एक वर्ष) में अधिकतम 91 दिनों तक स्वीकार्य होगा बशर्ते कि उसने संगत अंशदान अवधियों में कम से कम 78 दिन के अंशदान का
भुगतान किया हो। दिनांक 01.07.2011 से बिमारी हितलाभ दर मानक प्रसुविधा दर की 70 प्रतिशत कर दी गई है।

  • वर्धित बीमारी हितलाभ क्या है?

अधिनियम की धारा-99 के अंतर्गत प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए निगम द्वारा प्रदान किया जाने वाला यह एक अतिरिक्त बीमारी हितलाभ है। ऐसा बीमाकृत व्यक्ति जिसने बीमा योग्य रोजगार में दो वर्ष की अवधि पूर्ण कर ली हो तथा इस अवधि में कम से कम 156 दिन के अंशदान का भुगतान किया हो वह 34 विनिर्दिष्ट दीर्घकालीन बीमारियों के लिए 309 दिन की अवधि के लिए वर्धित बीमारी हितलाभ का पात्र है। इस अवधि को 730 दिन या बीमाकृत व्यक्ति के 60 वर्ष का होने तक जो भी पहले घटित हो बढ़ाया जा सकता है। इस बढ़ी हुई अवधि के लिए बीमाकृत व्यक्ति तथा उसका परिवार चिकित्सा हितलाभ के लिए भी पात्र है। दिनांक 01.07.2011 से वर्धित बिमारी हितलाभ की दर मानक प्रसुविधा दर की 80 प्रतिशत है।

  • विस्तारित बीमारी हितलाभ क्या है?

छोटे परिवार के मानकों को प्रोत्साहन देने के लिए बीमाकृत व्यक्ति को नलबंदी / नसबंदी ऑप्रेशन करवाने की अवस्था में नकद हितलाभ का भुगतान किया जाता है। इस हितलाभ का भुगतान नसबंदी ऑप्रेशन के लिए 7 दिनों की अवधि के लिए तथा नलबंदी ऑप्रेशन के लिए 14 दिनों की अवधि के लिए किया जाता है। ऑप्रेशन के बाद होने वाली किसी भी जटिलता की स्थिति में इस अवधि को बढ़ाया जा सकता है। दिनांक 01.07.2011 से विस्तरित विमारी हितलाभ की दर मानक प्रसुविधा दर के बराबर है।

  • अपंगता का क्या अर्थ है?

अपंगता, रोजगार चोट के कारण उत्पन्न ऐसी स्थिति है जो बीमाकृत व्यक्ति को अस्थाई रूप से कार्य करने के अयोग्य बना देती है और उसे चिकित्सा प्रसुविधा की आवश्यकता पड़ती है (अस्थाई अपंगता)। इससे उसकी अर्जन क्षमता कम हो सकती है (स्थाई आंशिक अपंगता) और इससे बीमाकृत व्यक्ति पूर्ण रूप से कोई भी काम करने की क्षमता से वंचित हो सकता है (स्थाई पूर्ण अपंगता) ।

  • रोजगार चोट क्या है?

यह भारत में अथवा भारत के बाहर बीमा योग्य रोज़गार के कारण और इस के दौरान किसी दुर्घटना अथवा व्यवसाय जनित रोग से कर्मचारी को लगी व्यक्तिगत चोट है।

  • व्यावसायिक रोग क्या है?

अधिनियम की तृतीय अनुसूची के भाग- क, ख और ग में सूचीबद्ध किस भी उद्योग में विनिर्दिष्ट कालावधि में नियोजन के दौरान लगने वाली बीमारी को व्यावसायिक रोग कहा जाता है। व्यावसायिक रोग मुख्यतः दो प्रकार के हो सकते हैं। अल्पावधि के तथा भारी मात्रा के साथ तीव्रता से आरंभ होने वाले जो किसी औद्योगिक पर्यावरण में विशैले पदार्थ की बहुत बड़ी मात्रा द्वारा तीव्र विषायण के समानार्थी हैं, और दूसरे चिरकालिक आरंभ होने वाले जो बारम्बार या निरंतर कम मात्रा में छोड़े गए विशैले पदार्थों के परिणामस्वरूप होते हैं।

  • अस्थाई अपंगता हितलाभ क्या है?

रोजगार चोट के परिणामस्वरूप अपंगता से पीड़ित बीमाकृत व्यक्ति को प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी द्वारा अभिप्रमाणित, कार्य से अनुपस्थिति अवधि के लिए यह एक आवधिक भुगतान है। यह भुगतान अस्थाई अपंगता समाप्त होने तथा कर्मचारी के अपने सामान्य कार्य को करने में सक्षम होने तक मानक हितलाभ दर का 150 प्रतिशत, जो उसकी मजदूरी का 75 प्रतिशत होता है, की दर से दिया जाता है। दिनांक 01.07.2011 से भुगतान की दर मानक प्रसुविधा दर की 90 प्रतिशत होगी।

  • स्थाई अपंगता हितलाभ क्या है?

रोजगार चोट के कारण यदि कोई स्थाई प्रकृति की अपंगता हो जाती है तो चिकित्सा बोर्ड द्वारा बीमाकृत व्यक्ति की जांच की जाती है और यदि उसकी अर्जन क्षमता की हानि हुई हो तो उसकी प्रतिशतता का आंकलन किया जाता है। बीमाकृत व्यक्ति को अस्थाई अपंगता हितलाभ की समाप्ति की तिथि के अगले दिन से अपंगता हितलाभ की पूर्ण दैनिक दर की यह प्रतिशतता जीवन भर स्थाई अपंगता मासिक अवधिक भुगतान के रूप में दी जाती है। निर्वाह व्यय के बढ़ जाने के कारण हितलाभ में आवधिक वृद्धि भी स्वीकार्य है। यह हितलाभ शाखा कार्यालय से नकद, निगम के खर्चे पर मनीआर्डर द्वारा या बीमाकृत व्यक्ति के बैंक खाते में हर माह जमा करके प्राप्त किया जा सकता है। बीमाकृत व्यक्ति एक मुश्त भुगतान का विकल्प भी चुन सकता है यदि उसके स्थाई अपंगता हितलाभ की दैनिक दर 5/- रुपये से अधिक नहीं है, या फिर दर 5/- रुपये प्रतिदिन से अधिक होने पर भी परिवर्तित मूल्य 30,000 /- रुपये से अधिक नहीं है।

  • आश्रितजन हितलाभ क्या है?

आश्रितजन हितलाभ रोजगार चोट या व्यावसायिक रोग से मृत्यु के परिणामस्वरूप बीमाकृत व्यक्ति के पात्र आश्रितों को मिलने वाली मासिक पेंशन है। यह हितलाभ शाखा कार्यालय से नकद या निगम के खर्च पर मनी ऑर्डर या प्रत्येक माह हितलाभाधिकारी के बैंक खाते में जमा करके प्राप्त किया जा सकता है।

  • यह हितलाभ कब तक तथा किस दर से दिया जाता है?

आश्रितजन हितलाभ की दर, जो मृतक बीमाकृत व्यक्ति को मानक प्रसुविधा दर का 90 प्रतिशत है। इसे आश्रितजनों में निम्नानुसार वितरित किया जाता है :-

  1. विधवा :- मृत्यु या पुनर्विवाह तक पूर्ण दर का 3/5 भाग
  2. विधवा माता को मृत्यु तक पूर्ण दर का 2/5 भाग
  3. पुत्रों को 25 वर्ष का होने तक पूर्ण दर का 2/5 की दर से
  4. अविवाहित पुत्रियों को विवाह होने तक पूर्ण दर 2/5 की दर से
  5. यदि पुत्र या पुत्री अशक्त है और बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के समय पूर्णतया उसकी कमाई पर आश्रित था/ थी, तो 25 वर्ष की आयु / शादी के बाद भी, जो भी स्थिति हो उसे यह हितलाभ मिलता रहेगा। ऊपर लगाए गए हिसाब के अनुसार यदि सभी आश्रितजनों का कुल आश्रितजन हितलाभ किसी भी समय, पूर्ण दर से अधिक हो जाता है तो सभी आश्रितजनों के हिस्से को उसी अनुपात में कम कर दिया जाता है ताकि उनको देय कुल राशि पूर्ण दर राशि से अधिक न हो।
  6. यदि कोई अनियत या अस्थाई कर्मचारी पहले ही दिन अथवा अपनी पहली अंशदान अवधि के पूर्ण होने से पहले ही रोजगार चोट से ग्रस्त हो जाता है तो क्या उसके लिए अस्थाई अपंगता / स्थाई अपंगता या आश्रितजन हितलाभ स्वीकार्य है ?
    अस्थाई अपंगता, स्थाई अपंगता या आश्रितजन हितलाभ के भुगतान के लिए कोई पात्रता शर्त या अंशदान संबंधी शर्ते नहीं जुड़ी हुई हैं । यदि वह बीमा योग्य रोज़गार में आने के प्रथम कार्यदिवस को ही रोजगार चोट से ग्रस्त हो जाता है तो भी ये हितलाभ उसके लिए स्वीकार्य हैं।
  7. प्रसूति हितलाभ क्या है ?
    प्रसूति हितलाभ किसी बीमाकृत महिला को प्रसवापस्था, गर्भपात या गर्भावस्था, समयपूर्व शिशु जन्म अथवा गर्भपात या प्रसव से उत्पन्न बीमारी के मामले में कार्य से अनुपस्थित रहने पर एक विनिर्दिष्ट अवधि के लिए दिया जाता है। प्रसूति हितलाभ की दर मानक प्रसूविधा दर के बराबर है।
  8. प्रसवावस्था क्या है ? प्रसवावस्था के मामले में प्रसूति हितलाभ कितनी अवधि तक स्वीकार्य है ?
    प्रसवावस्था का अर्थ है प्रसव पीड़ा जिसके परिणामस्वरूप जीवित बच्चा पैदा होता है या 26 सप्ताह के गर्भ के बाद जीवित या मृत बच्चा पैदा होता है। बीमाकृत महिला को 84 दिन के लिए प्रसूति हितलाभ देय है बशर्तें कि उसके संबंध में तत्काल पूर्ववर्ती दो संगत अंशदान अवधियों में कम से कम 70 दिन का अंशदान देय हो । बीमाकृत महिला की आवश्यकता तथा स्थिति को देखते हुए हितलाभ का दावा प्रसवावस्था की संभावित तारीख से 6 सप्ताह पूर्व या प्रसवावस्था की तारीख से किया जा सकता है।
  9. गर्भपात क्या है तथा इसका हितलाभ कितनी अवधि के लिए स्वीकार्य है ?
    गर्भपात का अर्थ है गर्भधारण के 26वें सप्ताह के दौरान या इससे पहले किसी भी समय गर्भवती महिला का गर्भपात हो जाना। लेकिन उस गर्भपात को स्वीकार नहीं किया जाएगा जो भारतीय दण्ड संहिता के अंतर्गत दण्डनीय हो । प्रसूति हितलाभ गर्भपात की तारीख से छः सप्ताह (42 दिन) की अवधि तक स्वीकार्य है बशर्ते कि वह निर्धारित अंशदान शर्तें पूरी करती हो।
  10. गर्भावस्था आदि से उत्पन्न बीमारी क्या है इसका हितलाभ कितनी अवधि तक स्वीकार्य है ?
    यदि बीमाकृत महिला को गर्भावस्था, गर्भपात, समय पूर्व शिशु जन्म या प्रसव से उत्पन्न होने वाली बीमारी की | दशा में चिकित्सा उपचार और परिचर्या और कार्य से अनुपस्थिति की आवश्यकता हो और इसे प्राधिकृत चिकित्सा अधिकारी ने प्रमाणित किया हो तो उसे हितलाभ देय है।
  11. प्रसूति व्यय क्या है ?
    प्रसूति व्यय किसी बीमाकृत महिला या बीमाकृत व्यक्ति की पत्नी के संबंध में केवल दो प्रसवावस्था में प्रसवावस्था के व्यय हेतु दी जाने वाली एकमुश्त राशि है और यह तब दी जाती है यदि जहां पर प्रसव हुआ है वहाँ पर क.रा.बी. योजना के अंतर्गत आवश्यक सुविधाएं उपलब्ध न हों। वर्तमान में प्रसवावस्था व्यय हेतु प्रति प्रसवावस्था 2500 /- रुपये दिए जाते हैं।

अन्त्येष्टि व्यय क्या है ? यह किसको दिया जाता है?

10000 /- रुपये की एक मुश्त राशि मृत बीमाकृत व्यक्ति की अंत्येष्टि पर व्यय के लिए मृत बीमाकृत व्यक्ति के कुटुम्ब के ज्येष्ठतम उत्तरजीवी सदस्य को या जहां बीमाकृत व्यक्ति का कोई कुटुम्ब न हो या वह अपनी मृत्यु समय अपने कुटुम्ब के साथ न रह रहा हो, तो उस व्यक्ति को दी जाती है, जो मृत बीमाकृत व्यक्ति की अंत्येष्टि पर वास्तव में खर्च करता है।

परिवार को हितलाभ

परिवार के सदस्यों को कौन-कौन से हितलाभ स्वीकार्य हैं?

  1. परिवार के सदस्य भी आवश्यकता पड़ने पर पूरी चिकित्सा देखभाल के हकदार हैं।
  2. चिकित्सा उपचार के भाग के रूप में परिवार के सदस्य भी कृत्रिम अंग, कृत्रिम उपकरण आदि के हकदार हैं।
  3. जिस अवधि के दौरान बीमाकृत व्यक्ति बेरोज़गारी भत्ता प्राप्त कर रहा हो उस अवधि में परिवार के सदस्य भी चिकित्सा हितलाभ के लिए पात्र हैं। यदि उसकी इस दौरान मृत्यु हो जाती है तो उसका परिवार 12 महीने की अवधि के अंत तक चिकित्सा हितलाभ के लिए हकदार है।
  4. मृत बीमाकृत व्यक्ति की अंत्योष्टि पर किए गए खर्चे की प्रतिपूर्ति ।
  5. रोजगार चोट के कारण बीमाकृत कर्मचारी की मृत्यु के मामले में, विधवा, विधवा माता और बच्चे आश्रित
    हितलाभ के हकदार हैं।
  6. बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के समय देय कोई भी हितलाभ नामिती को दिया जाता है।

सेवानिवृत्ति के बाद हितलाभ

सेवानिवृत्ति के बाद कर्मचारी को कौन सा हितलाभ स्वीकार्य है?

बीमाकृत व्यक्ति जो अधिवर्षिता की आयु प्राप्त करने पर बीमा योग्य रोजगार छोड़ देता है अथवा वह कम से कम पांच वर्ष तक बीमाकृत व्यक्ति रहने के बाद स्वैछिक सेवानिवृत्ति योजना के अंतर्गत सेवा निवृत्त हो जाता है, वह स्वयं तथा अपने विवाहिती के लिए चिकित्सा हितलाभ प्राप्त करने का पात्र होगा। इसके लिए उसे प्रमाण प्रस्तुत करना होगा और 120 /- रुपये प्रति वर्ष की दर से, अंशदान का भुगतान करना होगा। बीमाकृत व्यक्ति की मृत्यु के मामले में उसका विवाहिती शेष अवधि जिसके लिए अंशदान दिया गया था, के लिए चिकित्सा हितलाभ का पात्र होगा और वह 120 /- रुपये प्रति वर्ष की दर से अंशदान का भुगतान करके आगे की अवधि के लिए चिकित्सा हितलाभ प्राप्त करना जारी रख सकता है।
यह चिकित्सा हितलाभ, उपर्युक्तानुसार, अंशदान का भुगतान करने पर ऐसे बीमाकृत व्यक्ति तथा उसके विवाहिती के लिए भी स्वीकार्य है जिसे रोजगार चोट के कारण उत्पन्न हुई स्थाई अपंगता के कारण रोजगार छोड़ना पड़ा हो। यह हितलाभ उसे उस दिनांक तक स्वीकार्य होगा जिस दिनांक को वह यदि उसे यह स्थाई अपंगता न हुई होती तो, अधिवर्षिता की आयु प्राप्त करने पर सेवानिवृत्त होता ।

मानक प्रसुविधा दर क्या है?

अभिदाय कालावधि के दौरान सदंत कुल मजदूरी के दिनों की संख्या, जिसके लिए मजदूरी सदंत की गई थी, से विभाजित करने पर प्राप्त औसत दैनिक मजदूरी।

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